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पुष्टिमार्गीय वैष्णव हवेलियों में हिंडोला दर्शन शुरू, श्रावण में बाटी-चूरमा का भोग लगा रहे
भगवान श्रीकृष्ण ने राधा को झूला झुलाया था। इसके बाद से ही झूला झुलाने की परंपरा शुरू हुई। श्रावण में झुलना शुभ माना जाता है। पुष्टिमार्गीय वैष्णव हवेलियों में हिंडोला दर्शन बुधवार से शुरू हो गए। श्रीनाथद्वारा राजस्थान की प्रणालिका अनुसार दो प्रकार से प्रभुजी को झूला झुलाते हैं। पलना में बाल भाव, डंडी खंभ का हिंडोरा में प्रभु और स्वामिनीजी के भाव का प्रतिनिधित्व करता है।
श्री गोवर्धननाथ हवेली के सेवक गजेंद्र मेहता ने बताया हिंडोला रोपण प्रभु इच्छा से विरह से संयोग प्राप्ति की सेवा है। हिंडोलों में कांच, सूखे मेवों, फूलों, केले और पत्तों का, कपड़े का, मयूर पंख का, चांदी का ऐसे कई प्रकार से शृंगारित हिंडोलों में संध्या आरती में प्रभुजी को झुलाया जाता है।
प्रभुजी की सामग्री भी श्रावण मास में बाटी-चूरमा के भोग की हो जाती है। दाख का रायता, केसरिया बासुंदी जैसे उत्सव भोग कई प्रकार के होते हैं। श्रीनाथजी के हवेली ढाबा रोड, श्री गोवर्धननाथजी की हवेली कार्तिक चौक, श्री मदनमोहनजी की हवेली सराफा, श्रीपुरुषोत्तमनाथजी की हवेली गोलामंडी, महाप्रभु श्री वल्लभाचार्यजी की 73वीं बैठक, गोमती कुंड अंकपात पर पलना हिंडोला दर्शन संध्या आरती में हो रहे हैं। हरियाली अमावस्या पर मंदिरों में खासकर श्रीकृष्ण मंदिरों में झुला झूलने की परंपरा है। शहर के प्राचीन मंदिर अनंतनारायण दानीगेट पर हरियाली अमावस्या पर झुला झूलने की परंपरा चली आ रही है। वर्षों पहले तो खूब झुले झूले जाते थे और आपस में धानी-मुक्का खेला जाता रहा है।